गुजरातमधील सत्ताधारी पटेल समाज, आंध्रप्रदेशातील कापू समाज आणि आता हरियानातील सत्ताधारी जाट समाज आरक्षणाच्या मागणीसाठी रस्त्यावर उतरून कायदा हातात घेत असताना आरक्षणाबाबत निर्णय घेण्यासाठी बिगरराजकीय समिती नेमण्याची क्रांतिकारक सुचना पुढे आली आहे.
असेच आदेश 16 नोव्हेंबर 1992 रोजी मा.सर्वोच्च न्यायालयाने सरकारला दिले होते. त्याचे पालन गेली 23 वर्षे होत आहे. आरक्षणाबाबत होणारा राजकीय हस्तक्षेप टाळण्यासाठी कायमस्वरूपी तज्ञ समित्या [आयोग] गठीत करा. त्यासाठी स्वतंत्र कायदे करा, असेही मा.सर्वोच्च न्यायालयाने सरकारला आदेश दिले होते, त्यानुसार केंद्राने कायदा करून अशी तज्ञ समिती [आयोग] गठीत केला याला आता 23 वर्षे झाली आहेत.
पाहा :-
Pursuant to the direction of the Supreme Court, the Government of India enacted the National Commission for Backward Classes Act, 1993 (Act No. 27 of 1993) for setting up a Commission at National Level viz. “National Commission for Backward Classes” as a permanent body.
[The Supreme Court of India in its Judgment dated 16.11.1992 in Writ Petition (Civil) No. 930 of 1990 – Indra Sawhney & Ors. Vs. Union of India and Ors., reported in (1992) Supp. 3 SCC 217 directed the Govt. of India, State Governments and Union Territory Administrations to constitute a permanent body in the nature of a Commission or Tribunal for entertaining, examining and recommending upon requests for inclusion and complaints of over-inclusion and under-inclusion in the list of OBCs.
Pursuant to the direction of the Supreme Court, the Government of India enacted the National Commission for Backward Classes Act, 1993 (Act No. 27 of 1993) for setting up a Commission at National Level viz. “National Commission for Backward Classes” as a permanent body.
The Act came into effect on the 2nd April, 1993. Section 3 of the Act provides that the Commission shall consist of five Members, comprising of a Chairperson who is or has been a judge of the Supreme Court or of a High Court; a social scientist; two persons, who have special knowledge in matters relating to backward classes; and a Member-Secretary, who is or has been an officer of the Central Government in the rank of a Secretary to the Government of India.]
[http://www.ncbc.nic.in/User_Panel/CentralListStateView.aspx]
सर्व राज्यांनीही असेच कायदे करून असे आयोग निर्माण केलेले आहेत. ते सर्वत्र कार्यरतही आहेत.
अगदी महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगड या राज्यांनीही असे कायदे करून आयोग नेमलेले आहेत.
अशा स्थितीत वारंवार अशी "क्रांतिकारक सुचना" केली जात आहे.
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पाहा :-
http://cgobc.com/
छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग -
अन्य पिछड़े वर्गो / समुदाय के सदस्यों को संविधान के अधीन तथा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दिए गए संरक्षण के लिए हिप्रहरी के रूप में कार्य करने एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण के लिए बने कार्यक्रमो की समुचित तथा यथासमय क्रियान्वयन एवं निगरानी की जिम्मेकदारी के साथ राज्य सरकार अथवा अन्य निकाय या प्राधिकरण के कार्यक्रमो के लिए जिम्मेमदार हैं । सुधार हेतु सुझाव देने, लोक सेवाओं तथा शैक्षणिक संस्था्ओं में प्रवेश के लिए पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षण के संबंध में सलाह देने, पदों पर नियुक्ति के आरक्षण का उपबंध करने के प्रयोजनों के लिए राज्ये सरकार द्वारा समय समय पर तैयार की गई सूचियों में किसी भी नागरिक को अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में सम्मिलित करने की प्रार्थनाओं का परीक्षण करने या पात्र होने पर भी सम्मिलित न करने की शिकायतों को सुनने तथा राज्य सरकार को सलाह देने, पिछड़े वर्ग में समपन्न वर्ग के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति या समूह प्रवर्ग को सुनिश्चित करने के दायित्वों के निष्पादन हेतु छत्तींसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन छ.ग. में किया गया है ।
http://cgobc.com/about_org.php
प्रस्तावना -
शैक्षणिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शासकीय सेवा में पर्याप्त प्रतिनिधत्व न होने की दशा में आरक्षण की व्यवस्था का प्रावधान किया गया है । भारत सरकार ने सर्वप्रथम मार्च 1953 में काक कालेलकर कमीशन की नियुक्ति की एवं 31 दिसंबर 1978 को पुन: मडल कमीशन की नियुक्ति की गई । वर्ष 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को मानते हुए पिछड़े वार्गो को 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा 8 अगस्त 1990 को की और 13 अगस्त 1990 को विधिवत आदेश जारी किया गया ।
छत्तीसगढ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन -
सामाजिक आर्थिक दुर्बलता एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारण अन्य व्यक्तियों के समानता पर रहने के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से छ.ग. राज्य में पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक रूप देने के लिए 2 दिसंबर 2002 के अधिनियम के प्रावधान के अनुसार छ.ग. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन जनवरी 2007 में किया गया ।
आयोग पिछड़े वर्ग का हितप्रहरी -
संविधान के अनुच्छेद 340 (1) के तहत यह व्यवस्था की गई है कि पिछड़े वर्ग को परिभाषित किया जाय तथा राष्ट्रपति आयोग गठित करें और इस आयोग की सिफारिशों के अनुसार पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए कदम उठाये जाएं । 21 जनवरी 1983 को प्रसिद्ध समाज सेवक काका साहेब कालेलकर की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय पहला पिछड़ा वर्ग आयोग कठित किया गया इस आयोग में पूरे देश की लगभग 2300 जातियों को पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए सूची तैयार की पिछड़ा वर्ग के लोगों के शैक्षणिक उत्थान के लिए उच्च शिक्षण संस्थाओं मेडिकल व इंजीनियरिंग महाविद्यालयों आदि में सीटों के आरक्षक एवं शासकीय सेवाओं में आरक्षण की व्यवस्था छग. में की गई है ।
प्रदेश के पिछड़े वर्ग की जनता को उसका संवैधानिक अधिकार मिले तथा उसका उत्थान हो वह भी राष्ट्र के मुख्य धारा में शामिल हो सके। छ.ग. के पिछड़े वर्ग के लोगों की आकांक्षा को पूरा करने के लिए छ.ग. शासन कृत संकल्पित हैं ।
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