बाबासाहब आंबेडकर के जीवन पर `डा.बाबासाहब आंबेडकर महामानवाची गौरवगाथा' (डा.बाबासाहब आंबेडकर महामानव की जीवनगाथा) बुद्ध पूर्मिमा 18 मई से शुरू हुआ सीरियल मराठी में धूम मचा रहा है.
हिन्दी सिनेमा में आजकल बायोपिक की धूम मची हुई है. टीवी पर जीवनगाथाओं पर सीरियल बन रहे हैं. मगर संविधान निर्माता और देश के दलित आंदोलन के प्रेरणास्रोत और सूत्रधार डा.आंबेडकर पर न कभी कोई फिल्म नजर आई न सीरियल. इस कमी को स्टार टीवी के मराठी चैनल स्टारप्रवाह ने पूरा किया है. डा. बाबासाहब आंबेडकर के जीवन पर `डा.बाबासाहब आंबेडकर महामानवाची गौरवगाथा’ (डा.बाबासाहब आंबेडकर महामानव की जीवनगाथा) बुद्ध पूर्मिमा 18 मई से शुरू हुआ सीरियल मराठी में धूम मचा रहा है. रोजाना रात नौ बजे शुरू होने वाले इस सीरियल का टाइटल सांग लोगों को झकझोरे बिना नहीं रहता. मराठी के जाने माने संगीतकार और गायक आदर्श शिंदे द्वारा गाए गए इस गीत के बोल इस प्रकार हैं –
क्रांति सूर्य तू शिल्पकार तू
बोधिसत्व तू मूकनायका
मोडल्या रूढी त्या परंपरा दीव्यतेजा
तुम क्रातिसूर्य तुम शिल्पकार
हे मूकनायक तुम वोधिसत्व हो
दिव्यतेज से सडी गली रूढियों को तोड़ा
तूच सकल न्याय दायका
जीवन तूझे आम्हास प्रेरणा
दाही दिशा तूझीच गर्जना
तुमने संपूर्ण न्याय दिया
तुम्हारा जीवन हमारी प्रेरणा
दसों दिशाओं में तेरी गर्जना
यह शीर्षक गीत लोगों की जुबान पर है .दशमी फिल्मस द्वारा बनाए गए इस सीरियल की खासियत यह है एक कमर्शियल चैनल इसे प्रसारित कर रहा है और शोध ,लेखन और निर्माण की दृष्टि से आकर्षक है.
भारत के संविधान के निर्माता और दलितों के अधिकार के लिए संघर्ष करनेवाले डा. बाबासाहब आंबेडकर का जीवन भारतीय इतिहास का महान पर्व है. इतिहास के इन स्वर्णिम पृष्ठों को आप एक बार फिर स्टार प्रबवाह पर देख सकेंगे. बाबासाहब केवल दलितों के मसीहा ही नहीं थे वरन. राजनीतिक,आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिकऔर कानून के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले नेता भी थे. उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व और ओजस्वी वक्तृत्व से इन क्षेत्रों को प्रकाशित किया. दलितों के अंधकारमय जीवन में नई आशा का संचार किया.
इस सीरियल का निर्माण दशमी क्रिएशन नामक संस्था ने किया है और इसके निर्देशक अजय मयेकर हैं. स्टार प्रवाह चैनल के कंटेट हेड और फिल्म निर्देशक सतीश राजवाडे कहते हैं. एक व्यक्ति जिसके प्रति कृतज्ञ होकर लाखों लोग मुंबई की चैत्य भूमि और नागपुर की दीक्षाभूमि में इकट्ठा होते है और कहते हैं कि हमारी जीविका और जीने पर केवल बाबा साहब का अधिकार है. तब सोचिए कि उस व्यक्ति का प्रभाव कितना व्यापक है. आज भी किसी से पूछिए तो लोगों को उनके संविधान निर्माता होने से ज्यादा उनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है. उनके संघर्ष, उनके जीवन के चढ़ाव उतार उनका त्याग और उनके द्वारा सारे देश के लिए किया गया कार्य इतना बड़ा है. उसके बारे में जानकारी सारे देश के लोगों तक पहुंचे यही हमारी कोशिश है. दशमी क्रिएशन्स की प्रतिनिधि अपर्णा पाडगांवकर कहती हैं उन्हें केवल पिछड़ों का नेता भर माना जाता है. यह हमारा अज्ञान है. गर्भवती महिलाओं के तीन महीने की अधिकृत छुट्टी. आठ घंटे की शिफ्ट, बहुपत्नी प्रतिबंधक कानून आदि विविध नारी अधिकार और मजदूर अधिकार के कानूनों में उनका महत्वपूर्म योगदान है. यह बात सब तक पहुंचनी चाहिए. मैं मानती हूं कि एक महिला के रूप में उनके मुझ पर बहुत उपकार हैं. उसी ऋण से उऋण होने की यह छोटी सी कोशिश है.
यह सीरियल लोकप्रिय होने के साथ-साथ काफी चर्चित भी है. एक चैनल पर बाबा साहब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे, जिसमें पत्रकारों ने बहुत से सवाल सीरियल के बारे में ही पूछे. इस सीरियल में बाबा साहब की भूमिका सागर देशमुख निभा रहे हैं. उन्होंने मराठी के जाने-माने लेखक पुल देशपांडे पर बनी दो बायोपिक फिल्मों में अभिनय कर सराहना हासिल की है. बाबासाहब की पत्नी रमाबाई की भूमिका में नजर आंएगी शिवानी रांगोले. बालक बाबा साहब की भूमिका अमृत गायकवाड अदा कर रहे हैं, जिनके अभिनय को बहुत पसंद किया जा रहा है. तो पिता रामजी सुभेदार भूमिका मिलिंद अधिकारी निभा रहे हैं.
सीरियल में अब तक के एपिसोड में कहानी बाबा साहब के परिवार के 1904 में मुबई में जा बसने तक पहुंची है. इससे पहले वे महाराष्ट्र के सातारा जिले में रहते थे. जहां जातीय भेदभाव अपने चरम पर था. बाबासाहब के पिता रामजी अपने दोनों बेटों भीमराव और आनंदराज के पढ़ाई को लेकर बहुत सजग थे. वे अपने दोनों बेटों को स्कूल में भर्ती कराने ले जाते है शिक्षक तैयार हो जाता है मगर कहते कि बच्चों को कल से भेजे. वजह पूछने पर शिक्षक कहता है कि उनके बेटों के लिए बैठने का अलग इंतजाम करना पड़ेगा. उनके बेटों को सबके साथ फर्श पर बिठाने पर बाकी बच्चे एतराज करेंगे. इस पर बाबा साहब के पिता अपने साथ लाए अंगोछे को दो टुकडों मे फाड़ते हैं और जमीन पर बिछा देते है और कहते हैं कि बच्चों की पढ़ाई आज से ही शुरू की जाए. बाबा साहब की बचपन से ही खासियत यह थी कि वे पढ़ाकू थे और विद्रोही भी वे बचपन में मां-बाप से पूछते है कि क्या ध्रूवतारा आज भी दिखाई देता है. तो वे उन्हे ध्रूव तारा दिखाते है. इस पर बाबा साहब कहते है कि वे खूब पढ़ेगे और ध्रुवतारे की तरह अपना अलग स्थान बनाएंगे.
भेदभाव उन्हें हमेशा सताता था. पानी पिलाने से पुण्य मिलता है मानने वाले अन्य जाति के लोग. दलित या महारों को पानी तक नहीं पिलाते थे. इस पर बाबा साहब की बहुत तीखी प्रतिक्रिया होती थी कि वे जानवरों को पानी पिला देते हैं पर हमें पानी नहीं पिलाते, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा. यहां तक कि भेदभाव व्यापार तक में हावी था. बाबा साहब की बहन की शादी में परिवार साड़ी खरीदने जाता है दुकानदार पैसे लेता है पर उस पर गंगाजल छिड़कने के बाद और साड़ी हाथ में नहीं देता सड़क पर कीचड़ में फेंक देता है. जिस पर बालक भीम भी तीखी प्रतिक्रिया प्रगट करता है.
आम दलित का जीना कितना दूभर था कि भीम को अपने पिता से मिलने गोरेगांव जाना था. अव्वल तो कोई गाड़ी वाला तैयार नहीं हुआ. बड़ी मुश्किल से एक तैयार हुआ पर दोगुने पैसे लेकर. उस पर भी उसकी शर्त थी भीम और उसके भाई गाड़ी से दस कदम दूरी पर चलेंगे वह भी अपना सामान लेकर. इस सफर में बच्चों को पानी तक नहीं मिला. क्योंकि कोई दलितों के बच्चों को पानी कर नहीं पिलाता था.
जातिभेद के कारण पड़ोसियों के साथ मारपीट की घटनाएं तो आम बात थी. ऐसे में भी बाबा साहब ने पढ़ाई लिखाई पर अपना ध्यान केंद्रीत किया. अच्छे नंबरों से पास हुए, जबकि उनका ब्राह्मण मित्र परीक्षा पास भी नहीं कर पाया. सातारा के जातीय भेदभाव के माहौल से अजीज आकर बाबा साहब के पिता ने तय किया कि वे मुंबई में जाकर बसेंगे. मुंबई ने बाबा साहब को आत्मविश्वास दिया ,अपनापन दिया. जातिवाद का दंश वहां कम था. गांव में अन्य जातियों के बच्चे भीम और उसके भाई के साथ खेलना पसंद नहीं करते थे. मुंबई में बच्चे उन्हें घर आकर बुलाकर ले जाते. तभी तो बाद में बाबा साहब ने दलितों से आव्हान किया किया था कि उनके पास तो जमीने नहीं हैं. इसलिए जातिवाद के अड्डे गांवों को छोड़कर शहरों में जाकर बसें. उसके बाद से महाराष्ट्र में गांवों में बहुत कम दलित रह गए हैं. उन्होंने शहरों में रहकर काफी तरक्की भी की है.
बाबा साहब ने मां को बचपन में ही खो दिया था. मां की कमी वह हमेशा महसूस करते थे. उनके पिता ने दूसरी शादी करने का फैसला किया मगर भीम को दूसरी मां का आना नहीं सुहाया, उन्हें लगता था कि कोई उसकी मां की जगह नहीं ले सकता. पिता का उनके जीवन पर अमिट प्रभाव था. उनके पिता की इच्छा थी कि भीम पढ़ लिख कर बड़ा बने, जिसके लिए उन्होंने उनकी पढ़ाई पर काफी ध्यान दिया. परिवार को जातीय भेदभाव से बचाने के लिए सरनेम सकपाल से बदल कर आंबेडकर किया. मुंबई में आने के बाद तो वे भीम के होमवर्क पर भी नजर रखते थे. जब उन्होंने देखा कि भीम का होमवर्क ठीक तरीके से जांचा नहीं जाता तो उन्होंने उसका बेहतर स्कूल में भर्ती कराया.
मुंबई में जातीय का दंश इतना तीखा नहीं था, मगर था तो सही जब वहां बाकी छात्रों को पता चलता है कि वह दलित है तो वे उससे कट जाते है. स्कूल में मास्टरजी सबसे एक सवाल पूछते है जिसका जवाब बाकी छात्र नहीं दे. पाते मगर भीम देता है. तो मास्टरजी कहते है तुमने अछूत होकर भी इतनी पढ़ाई की है. वह बाकी बच्चों से कहते है भीम अछूत होकर भी आपसे पढ़ने में आगे है.
इस सीरियल की खासियत यह है शोधकार्य पर पूरा ध्यान दिया गया है. पटकथा और संवाद भी चुस्त है. हर पात्र को बहुत सोचसमझकर चुना गया है. इसलिए वह कालखंड आंखों के सामने है. पूरी तरह से उभर कर ता है.
निर्माण और लेखन के मूल्यों पर यह सीरियल इतना दमदार है कि मराठी में धूम मचा रहा है. बार-बार लगता है कि इसे हिन्दी में से डब किया जाना चाहिए ताकि डा, आंबेडकर की गौरवगाथा हिन्दीभाषियों तक भी पहुंच सके.
(लेखक दैनिक जनसत्ता मुंबई में समाचार संपादक और दिल्ली जनसत्ता में डिप्टी ब्यूरो चीफ रह चुके हैं. पुस्तक आईएसआईएस और इस्लाम में सिविल वॉर के लेखक भी हैं )
सतीश पेडणेकर Updated: 10 July, 2019 4:27 am IST
https://hindi.theprint.in/opinion/babasaheb-ambedkars-serial-is-running-in-maharashtra-on-star-pravah/73263/
No comments:
Post a Comment