Tuesday, October 2, 2018

सुमित्रा महाजन जी का वक्तव्य भ्रम फैलानेवाला

सुमित्रा महाजन जी का वक्तव्य भ्रम फैलानेवाला, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने कहा था, आरक्षण की समयसिमा ज्यादा हो। १० साल कम हैं। - प्रो. हरी नरके

रांची : " भारतीय संविधान के शिल्पी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने केवल १० साल के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। इन दस सालों में समतामूलक समाज का निर्माण हो ऐसा उनका सपना था। किन्तु हम हरबार आरक्षण की समयसीमा को बढ़ा रहे हैं, ऐसा होते हुए आरक्षण से क्या वाकई में कोई फायदे हुए हैं? उसपर विचारविमर्श करने की जरूरत हैं।" ऐसा लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जी ने कहा।

रांची में आयोजित एक प्रोग्राम में सुमित्रा महाजन जी बोल रही थी। " मुझे आरक्षण मिला किन्तु मेरे समाज के लिए मैंने क्या दिया इस बारे में हमने कितने बार सोचा हैं? इसपर सोचविचार जरूरी हैं। उसका फायदा क्या हैं? क्या यही आरक्षण की संकल्पना हैं?" ऐसा कहते हुए, "क्या शिक्षा और नोकरी में आरक्षण रखकर देश समृद्ध बन पाएगा?" ऐसा सवाल भी उन्होंने उठाया। दरमियान बाबासाहेब आंबेडकर जी ने समानता के लिए जो कार्य लिए उसका अनुकरण भी करना चाहिए ऐसा उन्होंने आवाहन किया। उस समय झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने लेफ्ट विचारों के इतिहासकारों पर भारत की प्रतिमा को नकारात्मक बनाने का आरोप लगाया।
महाराष्ट्र टाइम्स. कॉम। अक्टूबर १, २०१८

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"आरक्षण ज्यादा समय के लिए रखा जाना चाहिए (आरक्षण की समयसीमा ज्यादा हो) १० साल अधूरे।" - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर

आरक्षण तीन प्रकार के हैं। १. राजनीतिक आरक्षण (चुनावों में प्रतिनिधित्व), २. शिक्षा में आरक्षण, ३) नौकरियों में आरक्षण

संविधान के अनुच्छेद ३३४ के अनुसार सिर्फ राजनीतिक आरक्षण की समयसीमा १० साल हैं। शिक्षा और नौकरियों के आरक्षण के लिए संविधान में कोई समयसीमा नहीं।

राजनीतिक आरक्षण में दस साल की समयसीमा के लिए डॉ. आंबेडकर जी राजी नहीं थे। ये आरक्षण भी ज्यादा समय के लिए देना पड़ेगा ऐसे निर्देश उन्होंने संविधान सभा को दिए थे। फिर भी बहुमतवालों ने उसपर ध्यान नहीं दिया इसलिए आरक्षण की समयसीमा १० साल हुई।

यह समयसीमा बढ़ाने के लिए १९६० से लेकर आजतक छह बार संशोधन करना पड़ा। (अभी यह सीमा सत्तर साल के लिए हैं, यानी यह समयसीमा २०२० को खत्म होनेवाली हैं।)

संविधान सभा में ९० प्रतिशत सदस्य सवर्ण समाज से थे। संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी को बहुत भारी बहुमत था। कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता वल्लभभाई पटेल आरक्षण की समयसीमा १० साल की हो इसलिए आग्रही थे।

उन्हीं के आदेशानुसार संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी ने वीप निकाला। उससे उसपर चुनाव हुआ। १० साल के बाजू में ज्यादा वोटिंग हुई।

लोकतंत्रवाद पर भरोसा रखनेवाले बाबासाहेब अम्बेडकर जी न चाहते हुए भी उन्हें बहुमत से की हुई १० साल की समयसीमा को मानना पड़ा।

जिन्हे बाबासाहेब आंबेडकर जी से कोई लेनदेन नहीं वे लोग ऐसे समय बाबासाहेब के नाम कि ढाल (सुरक्षा कवच) सामने रखते हैं। " आपके बाबासाहेब ने कहा था, आरक्षण दस साल के लिए रखो, उनकी बात तो सुनो।" ऐसी सलाह दी जाती हैं।

उसमें से बड़ा झूठा प्रचार जन्म ले रहा हैं। "बाबासाहेब ने कहा था कि आरक्षण ज्यादा समय तक रखने से अनुसूचित जाती, जनजाति का नुक़सान होगा।" ऐसे भी झूठे मिथक माध्यमों (टीवी, अख़बार और सोशल मीडिया) पर जिंदा रखे जाते हैं।

यहां के कुछ बुद्धिजीवी लोग गोबेल्स के नीति का इस्तेमाल करके सच की छोटी सी परत चढ़ाकर बार बार झूठी बाते लोगों को बताकर वे उनके गले में (दिमाग के जरिए मुंह पर) उतार रहे हैं। इस झूठी बातों को ऐसे फैलाया जा रहा हैं कि उसके दबाव के कारण अब कुछ आरक्षण के लाभार्थी लोग भी ऐसेही बोल रहे हैं।

आजकल उससे एक धारणा बनी हैं। माध्यमों और बुद्धिजीवियों के फैलाई हुई अफवाओं ने ये धारणा पक्की की हैं। जन जन के दिमाग में ये धारणा बिठाई गई हैं। लोकसभा की अध्यक्षा सुमित्रा महाजन जी का आज का वक्तव्य उसी का एक हिस्सा हैं।

कुछ लोगों को लगता हैं कि शिक्षा और नौकरियों का आरक्षण सदा के लिए बरकरार रहेगा किन्तु मुझे ऐसा नहीं लगता। अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी इन्हे ओपन कैटेगरी से जब जनसंख्या के अनुपात नुसार प्रतिनिधित्व मिलेगा तो ये आरक्षण भी रद्द हो जाएगा ऐसा मुझे लगता है। आरक्षण यह मूलत: प्रतिनिधित्व (Representation) हैं। जातिव्यवस्था ने जिनकी अवसर को नकारा हैं उन्हें आरक्षण के द्वारा विशेष अवसर दिया जाता हैं। यह अफ़र्मेटिव (विधायक) एक्शन हैं। एक प्रकार से सरकारी स्तर के संरक्षित भेदभाव (प्रोटेक्टेड डिस्क्रिमिनेशन) हैं। समानता के लिए कुछ काल तक उसकी जरूरत हैं। किन्तु मूलत: संविधान समानता पर खड़ा हैं इसलिए ये आरक्षण कायम (परमनेंट) नहीं रह सकता।
जब महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति, विमुक्त जाति और ओबीसी लोगों को उनके जनसंख्या के अनुपात के नुसार ओपन कैटेगरी से जगह मिलेगी तब आरक्षण की जरूरत न होकर वो खत्म हो जाएगा।
यह विवादित मुद्दा होने के कारण इसे बाजू में रखते हैं।

संविधान सभा में क्या हुआ था?

१) देश के कानूनमंत्री डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी का २९ अगस्त १९४७ को संविधान मसौदा समिती के अध्यक्ष पद पर चयन हुआ। उन्होंने और उनके मसौदा समिती के सदस्यों ने रातदिन मेहनत करके केवल पांच महीनों में लगातार ४४ बैठक (मीटिंग) किये और संविधान का पहला मसौदा तयार किया। वो २६ फरवरी १९४८ को "भारतीय राजपत्र" (ग्याझेट ऑफ इंडिया) में प्रकाशित हुआ।

डॉ. आंबेडकर जी इस पहले मसौदे में राजनीतिक आरक्षण को १० साल की समयसीमा रखने के खिलाफ थे।

मूलभूत अधिकार उपसमिति के अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल इन्होंने वैसी लिखित शिफारिश भी की थी। फिर भी बाबासाहेब ने उसे नजरअंदाज किया। क्योंकि उन्हें दस साल की समयसीमा अधूरी लग रही थी।

२) इस विषय पर संविधान सभा में २५ मई १९४९ को बड़ी चर्चा हुई। कांग्रेस के पंजाब के सदस्य ठाकुरदास भार्गव जी ने राजनीतिक आरक्षण में १० साल की समयसीमा हो ऐसा बाबासाहेब को सुझाव दिया। बाबासाहेब आंबेडकर जी ने उस बात को नजरअंदाज किया। बाद में कांग्रेस पार्टी जिन के मुट्ठी में थी उन सरदार वल्लभभाई पटेल जी ने खड़े होकर ये सूचना दोबारा रखी। पंडित नेहरू जी ने उसका समर्थन किया। इसपर बाबासाहेब कुछ नहीं कर पाए।

३) फिर भी संविधान सभा के सदस्यों को अपना कहना ठीक लगा या न लगा ऐसा न हो इसलिए कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठनेता के आदेश से कांग्रेस पार्टी के सभी सदस्यों के लिए वीप (पक्षादेश) निकाला गया।
उसके अनुसार वोटिंग हुई। इसलिए १० साल की समयसीमा के पक्ष में बहुमत गया। परिणामस्वरूप संविधान में १० साल की समयासीमा आई।

४) लोकतंत्र वादी रहनेवाले बाबासाहेब आंबेडकर जी को खुद की इच्छा को दबाकर १० साल की समयसीमा को संविधान में शामिल करना पड़ा।

५) आगे २५ अगस्त १९४९ को आंध्रप्रदेश के सदस्य नागप्पा जी ने बाबासाहेब से बिनती की, " राजनीतिक आरक्षण १५० साल रखे, या देश के अनुसूचित जाती, जनजाति के नागरिक जबतक यहां के प्रगत जाती के लोगों के बराबरी में नहीं पहुंचते तबतक आरक्षण रहेगा ऐसी व्यवस्था करिए।" (देखिए - CAD, संविधान सभा की चर्चाएं, लोकसभा सचिवालय प्रकाशन, नई दिल्ली, २००३, खंड ८, पृष्ठ संख्या २९१)

६) उसपर बोलते हुए बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने खुलासा किया कि, " I personally was prepared to press for a Longer Time. ... I think and generous on the part of this House to have given the Scheduled Caste a longer Term with regard to these Reservations. But as I said, it was accepted by the House."
वे बोले, " आरक्षण ज्यादा समय तक रखना पड़ेगा ऐसा मुझे निजी तौर पर लगता था। इस सभागृह ने अनुसूचित जाति के इस आरक्षण को ज्यादा समयसीमा देनी चाहिए थी किन्तु मैंने पहले ही बताया की इस सदन (सभागृह) ने १० साल के समयसीमा का फैसला लिया है।"
(देखें- CAD, वहीं, खंड ८, पृ. ६९६/९७ )

वे आगे ऐसे भी बोले कि, " अगर इन दस सालों में अनुसूचित जाति की उन्नति नहीं हुईं तब यह समय सीमा बढ़ाने का प्रावधान भी मैंने संविधान में किया हैं।
(देखें- संविधान सभा चर्चा, दि. २५ ऑगस्ट १९४९, खंड ८)
और समय ने यह सिद्ध किया कि बाबासाहेब अम्बेडकर जी का कहना सही था।

"राजनीतिक आरक्षण १० साल से ज्यादा समय रखना पड़ेगा" ऐसा संविधान सभा को बतनेवाले बाबासाहेब आंबेडकर जी के नाम का इस्तेमाल करके आज जो अफवाएं फैलाई जा रही हैं क्या वे अब बंद भी होगी?

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देखें -https://maharashtratimes.indiatimes.com/…/arti…/66025737.cms
Web Title sumitra mahajan says ambedkarjis himself said that reservation is required for only 10 years
(मराठी बातम्या from Maharashtra Times , TIL Network)
इतर बातम्या: सुमित्रा महाजन|डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर|आरक्षण|sumitra mahajan|reservation|Ambedkar

-प्रा. हरी नरके, १ अक्तूबर २०१८
हिंदी अनुवाद : अमित इंदुरकर

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